Sunday, December 13, 2009

हँसी ऐसी की जैसे, धुल जाएँ, सब दुःख-शोक, मिट जाए मोह
बह निकले आत्म सुधारस, सघन सामिप्य बन जाए बिछोह
यूँ तो देख रहे हैं एक ही दिशा की तरफ़ हम सब
पर नहीं जानते, किसको, क्या, दिख जाता है कब

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