Monday, December 7, 2009


देखो तो विस्मित करता है अपने सौंदर्य और सम्भावना से हर एक पत्थर
सुनो तो कण कण में सुनाई दे जाए शाश्वातानंद राग का पूर्ण करता स्वर
शहर की बाँहों के सकारात्मक आलिंगन में अलग अलग हम सब एक हो जाते हैं
कहीं एक स्वर्णिम शिखर को देखते, अपनी स्वप्निल पगडण्डी पर बढ़ते जाते हैं

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