Thursday, December 24, 2009

कौन रास्ता कब चुने, उठता नहीं सवाल
जो जाने गंतव्य को, वो तो हुआ निहाल
प्यास बुझाने की कला, सिखलाती है प्यास
जिसकी जिसको प्यास है, वो पहुंचे उसके पास

Wednesday, December 23, 2009

पत्थर के आकार पर दिखती है बहते समय की छाप
पर उसे देख कर भी पत्थर बने रहते हैं हम और आप

जगमग जगमग नगर में, डगमग मन दिन रात
छुपा छुपा कर चल रहे,सब अपने मन की बात

Tuesday, December 22, 2009

परिक्रमा पर्वत की करते, श्याम सुन्दर का सुमिरन
पग पग पर प्रेरक, प्रेमास्पद, उन्नत पथ पर जीवन



श्वेत वस्त्र धारी वृक्षों से सजी धजी धरती गाये
मौनयुक्त होकर ही सुनने वाला उसको सुन पाए

Monday, December 21, 2009

देर रात बर्फ ने चुपचाप उतर कर जमा लिया अपना मोर्चा
सुबह सुबह घरों के बाहर, लोगों के लिए खुल गए नए नए मोर्चे



बर्फ के बावजूद, बनाये रखा झाड़ियों ने अपना अस्तित्व, दिखाया अपना रंग
नयी कला के प्रतिमान बन गए, मिल जुल कर एक दुसरे अपने विरोधी के संग

Sunday, December 20, 2009

गिरिधर की लीला अमर, अमर कृपा का कोष
ले प्रसाद प्रभु प्रेम का, नित्य रहे संतोष
सब वैभव नंदलाल का, दिव्य-भव्य दरबार
मिल जुल कर जाग्रत करें लीला रस की धार

Saturday, December 19, 2009

श्याम सुन्दर के गीत लिए, बरसों से बैठा सुमिरन जल
जो तत्परता से भीग सके, पावन हो उसका अन्तः स्थल
गुरु कृपा दृष्टि हरियाली, गुरुमय मन नित दिवाली
उत्सव अनंत के आने का, हो रही धरा मतवाली

Friday, December 18, 2009

बार बार उस पथ पर आकर, अंतस में उन्नत स्पंदन
परिक्रमा से पार लग रहे, तत्क्षण ये सारे भाव बंधन

उजियारे का लिए बुलावा, किरण सुनहरी घर घर आये
करो उजागर सुन्दरतम को, ये सन्देश जिए और गाये

Thursday, December 17, 2009

मिले सहज ही दृश्य में, नव विस्तार अपार
बैठ किनारे फिर भी मन, क्यों देखे उस पार
ताल तल्लैय्या में धरा मंगल लीला गान
प्रेमी जन करते रहें, दिव्यसुधा रस पान

Wednesday, December 16, 2009

सब सोये होते हैं शहर में, जागते हैं आदित्य नायक, छा जाते गली आँगन
उजियारे फैला कर, छुपा हुआ सब दिखला कर, जाग्रत कर देते अपनापन
ना जाने कबूतर ने, कबूतरी के कान मैं क्या फुसफुसाया
मौन में शाश्वत प्रणय लीला का रसमय गान उमड़ आया

Tuesday, December 15, 2009

पेड़ों कि जड़ों के साथ, वहां पर जड़ें हैं भक्ति और सुमिरन की
जहाँ पर खेले कान्हा, आरती उतारें उस भूमि के कण कण की


बात क्या है कि माता कहलाती हैं गैय्या
क्यों बन गए द्वारकाधीश भी धेनु चर्रैय्या
पावन संवेदना कि वाहक, भोली, उदार
स्नेहमय, शांति स्वरूप गोमाता है भैय्या

Monday, December 14, 2009

पतझर के आने से पहले, सुंदर लिखता वृक्ष कहे
पत्ते चाहत के प्रतीक हैं, चाहत हरदम नहीं रहे
कभी नहीं मिटता उजियारा, जागे नित बाज़ार हमारा
लेन देन का कौशल लेकर, बढ़ता है संसार ये सारा

Sunday, December 13, 2009

हँसी ऐसी की जैसे, धुल जाएँ, सब दुःख-शोक, मिट जाए मोह
बह निकले आत्म सुधारस, सघन सामिप्य बन जाए बिछोह
यूँ तो देख रहे हैं एक ही दिशा की तरफ़ हम सब
पर नहीं जानते, किसको, क्या, दिख जाता है कब

Saturday, December 12, 2009

भाषा, राष्ट्र और संबंधों को लेकर देते हैं जीवन को विस्तार
सीमाओं से बाहर झाँकने का आव्हान करते हैं कलाकार
(Rupa and April Fishes band ki Rupa, lyricist, singer, band leader and a doctor too,
she aspires to capture the melody of words in her songs and shares sensitive stories with a call for oneness)
वो ये दावा तो नहीं करता की उसमें सारा जहाँ है
पर भरा पूरा करता है, ये अहसास की वो यहाँ है
(sheen kauf Niam, acclaimed shayar and critic with Ashok Vyas)

Friday, December 11, 2009

रास्ता चाहे जैसा भी हो, मन की सुन्दरता से बदल सकता है रास्ते का प्रभाव
कभी अवरोध बनता तो कभी मदद करता है, नए रास्तों से मिलने का चाव
कोई नहीं कहता, खिड़की खुली है, तो बाहर देखा ही जाए
होता है, भीतर देखते देखते इंसान बाहर देख ही ना पाये

Thursday, December 10, 2009

देख कर भी नहीं मानते हम, शाश्वत सौन्दर्य का होना
बांधे रखता है, किसी रंग का पाना और किसी का खोना
प्रार्थना
चलना ही तो है दो कदम
चलें चलते चलते
हो जायें आकाश

Wednesday, December 9, 2009

करते हुए पत्तों की प्रतीक्षा, गगन की आरती करती हैं
शाखाएं जड़ों का संदेश लेकर जो है, उसी से संवरती हैं


माल्यार्पण जब जब हुआ उजाले का, अंधेरे ने भी पा लिया सम्मान
कौन किससे कैसे जुड़ा हुआ है, देख देख कर हो जाते हैं हम हैरान

Tuesday, December 8, 2009

उस क्षण जब झर रहे थे पीले पीले पत्ते, बिछोह की सुन्दरता को गाते हुए
क्या सिखा रहे थे हमें कुछ, अपना उदाहरण अनायास इस तरह बताते हुए
रास्ता जाने जाने, पहचान देती है उसे, उपस्थिति वृक्षों की, पत्तों की, हरियाली की
मौसम के साथ जो सम्बन्ध है रास्ते का, उससे जुड़ी है आत्मा होली और दीवाली की

Monday, December 7, 2009


देखो तो विस्मित करता है अपने सौंदर्य और सम्भावना से हर एक पत्थर
सुनो तो कण कण में सुनाई दे जाए शाश्वातानंद राग का पूर्ण करता स्वर
शहर की बाँहों के सकारात्मक आलिंगन में अलग अलग हम सब एक हो जाते हैं
कहीं एक स्वर्णिम शिखर को देखते, अपनी स्वप्निल पगडण्डी पर बढ़ते जाते हैं

Sunday, December 6, 2009

अखबार में जो भी है, अस्थिर है, चलायमान है
पर लीलारस की हर बात पर उसका ध्यान है

एकाग्रता उनकी पिघल कर बहती है ऐसे, की सुनने वाले भी हो जाते तन्मय
ध्यान लगा कर साथ सुरों के लेते हैं वो, रसिक शिरोमणि नंदलाल का आश्रय

Saturday, December 5, 2009

ले लेने नित्य अभय प्रदायक श्री चरणों का आश्रय
आतुर है गुरु अभिनन्दन करने को समर्पित ह्रदय



शुद्ध करने अपना मन, करवाते है हम बाबा को स्नान
करते हुए उनका गुणगान, हर मुश्किल हो जाती आसान

Friday, December 4, 2009

ऊँचे कद के पेड़, अपनी मौन महिमा में हमें नहलाते हैं
आसमान का परिचय पत्र हमारे ह्रदय तक पहुंचाते हैं


पावनता का नया परिचय सुनाता है
अग्नि सौंदर्य मुझमें गुनगुनाता है

Thursday, December 3, 2009

चित्र गतिमान सत्य का, अलग अलग रंगों में दिख कर अभी अनदिखा रह जाता है
या फिर सत्य, हर दृश्य को छूकर, उसमें होते हुए भी उससे आगे निकल जाता है

कभी कभी अच्छा लगता है रास्ते का बुलावा
और ऊँचे पेड़ों का मौन में भीगा हुआ पहनावा