Sunday, April 3, 2011

अपना साथ


सरल शब्द में गहरी बात
बोले है दिन बहरी रात
दुनियां के पीछे भागा जो 
खो बैठा वो अपना साथ 

अशोक व्यास  

Saturday, February 27, 2010

                                                  (स्थान- संवित साधनायन, अबू पर्वत, चित्र- अभय हर्ष )

                                                      जिसके होने से साँसों में बजती है सार की शहनाई
                                                      हर तरफ  उसी की अदृश्य उपस्थिति देती है दिखाई

Thursday, December 24, 2009

कौन रास्ता कब चुने, उठता नहीं सवाल
जो जाने गंतव्य को, वो तो हुआ निहाल
प्यास बुझाने की कला, सिखलाती है प्यास
जिसकी जिसको प्यास है, वो पहुंचे उसके पास

Wednesday, December 23, 2009

पत्थर के आकार पर दिखती है बहते समय की छाप
पर उसे देख कर भी पत्थर बने रहते हैं हम और आप

जगमग जगमग नगर में, डगमग मन दिन रात
छुपा छुपा कर चल रहे,सब अपने मन की बात

Tuesday, December 22, 2009

परिक्रमा पर्वत की करते, श्याम सुन्दर का सुमिरन
पग पग पर प्रेरक, प्रेमास्पद, उन्नत पथ पर जीवन



श्वेत वस्त्र धारी वृक्षों से सजी धजी धरती गाये
मौनयुक्त होकर ही सुनने वाला उसको सुन पाए

Monday, December 21, 2009

देर रात बर्फ ने चुपचाप उतर कर जमा लिया अपना मोर्चा
सुबह सुबह घरों के बाहर, लोगों के लिए खुल गए नए नए मोर्चे



बर्फ के बावजूद, बनाये रखा झाड़ियों ने अपना अस्तित्व, दिखाया अपना रंग
नयी कला के प्रतिमान बन गए, मिल जुल कर एक दुसरे अपने विरोधी के संग

Sunday, December 20, 2009

गिरिधर की लीला अमर, अमर कृपा का कोष
ले प्रसाद प्रभु प्रेम का, नित्य रहे संतोष
सब वैभव नंदलाल का, दिव्य-भव्य दरबार
मिल जुल कर जाग्रत करें लीला रस की धार