Sunday, November 15, 2009

खिड़की से जो दिखता है, उस सच मे और बहार जाकर जो दिखता है उस सच मे, अन्तर सही, सम्बन्ध तो है कुछ
और कुछ नहीं, तो यही सही की यहाँ भी मैं हूँ और वहां भी मैं हूँ



है सफर मेरा बड़ा, छोटी सी हूँ पर एक कर देती हूँ, अपनी यात्रा से, आसमान को धरती से
बूँद हूँ मैं

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