Saturday, November 14, 2009

फिर मौसम बदलेगा


तो फिर कौन है जो भाल पर उजियारे का तिलक कर जाता है
किसकी आहट पर कोई बार बार खिड़की के पास चला आता है
कौन है वो, जो हर दिन दिखाई देती जगह में नयापन जगाता है



क्यों ऐसा होता है, पत्ते जब बिछुड़ते हैं शाखाओं से, हमारे अन्दर भी उतर आती है उदासी ज़रा सी
शाखाएं बनी रहती हैं इस उम्मीद के साथ की फिर मौसम बदलेगा, फिर पत्ते आयेंगे
हम भी बने हैं, चिर वसंत की प्रतीक्षा में, अपनी अपनी जड़ो से जुड़े होकर भी ठूंठ से लगते हुए

पहले से तय नहीं होता ट्रैफिक, कोई नहीं जानता कब कौन सी गाड़ी कहाँ से आएगी
और कब कौन सा क्षण, अंधेरे के पार से उभरे उजाले का चित्र बन जाएगा


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